आज गांधी जयंती है और इसके लिए आप सबको ढेरों बधाई। राष्ट्रपिता के जन्म दिवस के मौके पर ये जानना जरूरी होगा कि जिस व्यक्ति ने अपने जीवन को मानव समाज और देश को समर्पित कर अहिंसा की ताकत का मूल्य समझाया आखिर उसकी सोच, दर्शन और सिद्धान्त क्या थे, समाज रचना की तकनीक क्या रही होगी, उसका सत्याग्रह कितना प्रासंगिक रहा होगा। इन सब को जानने के लिए सबसे पहले हमें गांधीवाद जैसे शब्द से बचना होगा क्योंकि वाद में जड़ता होती है।
इसके लिए गांधी विचार को जानना जरूरी होगा, क्योंकि विचार दर्शन से प्रवाह हुआ करता है और गांधी दर्शन के मूल में आपको सत्य, अहिंसा, सादगी अस्तेय, अपरिग्रह, श्रम और नैतिकता मिलेगी- जहां से स्थानीय स्वशासन, स्वावलम्बन, स्वदेशी विकेन्द्रीकरण, ट्रस्टीशिप परस्परावलम्बन, सहअस्तित्व, शोषणमुक्त व्यवस्था और सहयोग, सहभाव एवं समानता पर आधारित जागृति ढांचे का अभ्युदय होगा।
किसी से भी पूछने सबसे पहले यही सुनने को मिलता है कि गांधी जी को सत्याग्रह के लिए जाना जाता है, दरअसल गांधी जी के सत्याग्रह का व्यापक अर्थ है अन्याय, अत्याचार, उत्पीड़न, दमन करने वाली जनद्रोही भ्रष्ट और शोषण व्यवस्थाओं से असहयोग तथा समाज में शुभ चिंतन और कर्म करने वाने लोगो और संगठनों के बीच समन्वय सहकार। जहां तक आज के समय में इसकी प्रासंगिकता का सवाल है तो आज जरूरत है कि हम अपने ढंग से ईमानदारी के साथ सत्याग्रह का सम्यक प्रयोग करें। मूल बात यह है कि हम सत्य पर अडिग हों, साधन शुद्धि पर हमारा भरोसा हो और व्यापक लोकहित पर हमारा बराबर ध्यान लगा रहे। वास्तव में सत्याग्रह होना चाहिए समाज को बेहतर बनाने के लिए, निरंकुश राजसत्ता पर जनता के प्रभावी अंकुश के लिए, नया समाज गढ़ने के लिए, जड़ीभूत मूल्यों और ढांचे के ध्वंस के लिए और स्वयं अपने भीतर के कलुषों को भगाने के लिए।
हमेशा यही होता है कि हम अपने महापुरुषों के जन्मदिन और पुण्यतिथियों पर बड़ी बाते करतें है और उनके आदर्शों पर चलने का संकल्प लेते है लेकिन फिर अगली सुबह हम उसी जड़ समाज का सक्रिय अंग बन जाते हैं। अब वक्त आ गया है कि हम अपनी इस परिपाटी को छोड़ें और इसके हमें गांधी जयंती से अच्छा मौका नहीं मिलेगा क्योकि जितनी समाजिकता और नैतिकबोध का सजीव और निर्मल चित्रण हमें उनकी छवि से मिलेगा उतना किसी अन्य से नहीं।
आज भूमंडलीकरण का दौर है और अब राज्य उपनिवेशवाद का स्थान बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद ने ले रखा है, गांधी जी राज्य उपनिवेश से लड़े थे हमें बहुराष्ट्रीय उपनिवेशवाद से जूझना है क्योंकि दैत्याकार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और उनके साम्राज्य विस्तार को बढ़ावा देने वाले विश्व बैंक, अन्तराष्ट्रीय मुद्राकोष और विश्व व्यापार संगठन की नापाक तिकड़ीका शिंकजा हम पर कसता जा रहा है। दरअसल गांधी के अनुसार विकास के लिए बुनयादी शर्त थी कि हम अंदर से सबल बनें, आन्तरिक संसाधनों पर हमारी ज्यादा निर्भर्ता हो, निर्णय लेने का अधिकार हमारे हाथों में हो और हमारी सारी व्यवस्थाएं सवतंत्र स्फूर्त हों।
एक और बात साफ कर देना बेहद जरूरी है कि गांधी जी बाहर की चीजों का एकदम निषेध नहीं करते बल्कि वे इसके न्यूनातिन्यून आवश्यकता के पक्षधर हैं, क्योंकि उनका मानना था कि बाहरी शक्तियों के सीमा से अधिक होने पर वे हम पर हावी होती जाएंगी, परिणामस्वरूप हमारी स्वतंत्रता कम होती जाएगी। कुछ विचारकों का मानना है कि गांधी विचार का अनुसरण करके हम दुनिया से अलग-थलग पड़ जाएगें। जबकि परिदृश्य एकदम अलग है।
वास्तव में गांधी जी वैश्विक महासंघ की परिकल्पना में सभी राष्ट्रों का स्वतंत्र अस्तित्व है। उनके अनुसार किसी भी राष्ट्र को अन्य राष्ट्रों के शोषण की आजादी नहीं रहेगी और न ही कोई राष्ट्र इतना मोहताज या लाचार होगा कि अन्य राष्ट्र उसके स्वत्व का दोहन या उसकी सप्रभुता का अपहरण कर सके। दरअसल गांधी का विचार था कि हमारे दिमाग की खिड़कियां इतनी जरूर खुली होनी चाहिए कि हम बाहर की चीजों का लाभ उठा सकें, लेकिन साथ ही ये भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारे दरवाजे इतने न खुल जाएं कि बाहर का भीषण अंधड़-तूफान हमारे अंदर दाखिल होकर हमारे परखचे उड़ा दे। गांधी जी के अनुसार हमें बाहर की खुली ताजी हवा चाहिए बाहर की सड़ांध नहीं कि जिसके रोगाणु हम पर हमला कर दें।
सेमुअल ने गांधी जी के बारे में कहा था कि गांधी जी ने अपना नेतृत्व प्रदान कर भारतीय जनता को अपनी कमर सीधी करना सिखाया और अकिंचन दृष्टि से परिस्थियों का सामना करना सिखाया।
सचमुच महात्मा गांधी भारतीय राजनीति और राष्ट्र की महत्वपूर्ण कड़ी हैं